लोगों में चेलाराम के प्रति यह धारणा थी कि जो कोई भी उसकी मनहूस शक्ल देख लेता है, उसे दिनभर भोजन नसीब नहीं होता। यह खबर महाराज तक भी पहुंची। अंततः उन्होंने सत्यता परखनी चाही। अगले दिन उन्होंने चेलाराम को बुलवा भेजा और अपने कक्ष के ठीक सामने वाले कक्ष में ठहरा दिया गया। चेलाराम कुछ दिनों तक राजसी सुख भोगता रहा।
एक दिन महाराज की नींद बहुत जल्दी उचट गई। उधर चेलाराम भी जाग चुका था और झरोखे से देख रहा था। तभी महाराज की दृष्टि उस पर पड़ी। और यह इत्तफाक ही था कि उस दिन महाराज को दिनभर खाना नसीब नहीं हुआ। परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बन गई थीं। उन्होंने सैनिकों को आदेश देते हुए कहा, ‘चेलाराम वाकई मनहूस है। इसे फांसी पर लटका दिया जाए।’ चेलाराम अपने कक्ष में चिंतामग्न बैठा था। तेनालीराम रात्रि के समय उसके पास पहुंचा तो चेलाराम ने अपनी व्यथा उसे बता दी।
तब तेनालीराम ने उससे कहा, ‘कल जब फांसी से पूर्व तुम्हारी अंतिम इच्छा पूछी जाए तो तुम कहना कि मैं प्रजा के सामने कुछ कहना चाहता हूं।’
उसकी अंतिम इच्छा जान शहर के मध्य सभा बुलाई गई। उसमें चेलाराम बोला, ‘भाइयो! मैं तो इस नगर के लोगों के लिए मनहूस हूं, लेकिन इस नगर के महाराज तो महामनहूस हैं। मेरी सूरत देखने से तो रोटी ही नसीब नहीं होती। लेकिन महाराज की सूरत देखने से तो मौत मिलती है… मौत।’
महाराज ने यह सुना तो वे हत्प्रभ रह गए। उन्होंने उसकी फांसी की सजा रद्द कर उससे पूछा, ‘तुम्हें यह सीख किसने दी?’ तब चेलाराम बोला, ‘महाराज ! ऐसी सीख तेनालीराम के अलावा भला और कौन दे सकता है।‘ फिर महाराज ने तेनालीराम की बुद्धि की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘आज तेनालीराम ने मेरे हाथों महापाप होने से बचा दिया।’